Delhi और Punjab की Sikh Bodies 9th Guru की शहादत पर एकजुट – DSGMC ने SGPC को लिखी चिट्ठी, मिलकर Commemoration की अपील

गुरु तेग बहादुर जी की 350वीं शहादत वर्षगांठ को लेकर दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (DSGMC) ने एक बड़ी पहल की है। DSGMC ने शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (SGPC) से आग्रह किया है कि इस ऐतिहासिक मौके को मिलकर, एकजुट होकर मनाया जाए ताकि सिख समुदाय में एकता का संदेश जाए और गुरु साहिब के बलिदान को पूरे सम्मान के साथ याद किया जा सके।

DSGMC के अध्यक्ष हरमीत सिंह कालका ने SGPC के अध्यक्ष हरजिंदर सिंह धामी को पत्र लिखते हुए कहा कि अलग-अलग कार्यक्रम करने से पंथ में बंटवारे जैसा संदेश जाता है, जो गुरु साहिब की शिक्षाओं और बलिदान की भावना के खिलाफ है।

गुरु साहिब ने इंसानियत के लिए दी थी कुर्बानी” – हरमीत सिंह कालका

अपने पत्र में कालका ने लिखा,

“गुरु तेग बहादुर जी ने दिल्ली में हिंदू धर्म की रक्षा और धार्मिक आज़ादी के लिए शहादत दी थी। आज अगर हम उनकी याद में अलग-अलग आयोजन करें, तो यह उनके बलिदान की भावना का अपमान होगा।”

उन्होंने SGPC से अपील की कि दोनों संस्थाएं मिलकर एक مشترك आयोजन करें जो पूरी दुनिया के सामने सिख समुदाय की एकता को दिखाए।

इतिहास में कई बार हुआ है पंथ का एकजुट आयोजन

हरमीत सिंह कालका ने कुछ ऐसे ऐतिहासिक आयोजनों का भी ज़िक्र किया जो SGPC और DSGMC ने साथ मिलकर किए थे, जैसे:

  • 1999 – खालसा पंथ की स्थापना की 300वीं वर्षगांठ (तख्त केसगढ़ साहिब, आनंदपुर साहिब)
  • 2004 – गुरु अंगद देव जी की 400वीं जयंती
  • 2008 – गुरु ग्रंथ साहिब जी की स्थापना की 300वीं वर्षगांठ (तख्त हजूर साहिब, नांदेड़)
  • 2019 – गुरु नानक देव जी की 550वीं जयंती (सुल्तानपुर लोधी)

इन आयोजनों में सिख संगत ने पूरे जोश और श्रद्धा के साथ भाग लिया था, और वह एकता फिर से दिखाई जानी चाहिए – ऐसा DSGMC का मानना है।

अन्य शहीदों को भी दी जाए श्रद्धांजलि

DSGMC अध्यक्ष ने अपने पत्र में यह भी सुझाव दिया कि इस अवसर पर भाई मती दास, भाई सती दास, और भाई दयाला जी को भी श्रद्धांजलि दी जाए, जिन्होंने गुरु तेग बहादुर जी के साथ मिलकर मुगलों के ज़ुल्म के खिलाफ आवाज़ उठाई और शहीद हुए।

गुरु तेग बहादुर जी की शहादत – धर्म और इंसानियत के लिए बलिदान

गुरु तेग बहादुर जी की शहादत भारतीय इतिहास में एक ऐसा अध्याय है जो धार्मिक स्वतंत्रता, साहस और इंसानियत की रक्षा का प्रतीक है।
उन्होंने 1675 में दिल्ली के चांदनी चौक में औरंगज़ेब के हुक्म पर अपनी जान दी, लेकिन जबरन धर्म परिवर्तन को स्वीकार नहीं किया। कश्मीरी पंडितों के धार्मिक अधिकारों की रक्षा के लिए उन्होंने शहादत दी, जिसे आज भी पूरे देश में श्रद्धा से याद किया जाता है।

SGPC की प्रतिक्रिया का इंतज़ार

अब सबकी निगाहें SGPC पर हैं कि वह DSGMC के इस आग्रह पर क्या रुख अपनाती है।
अगर दोनों संस्थाएं मिलकर आयोजन करती हैं तो यह न सिर्फ सिख समुदाय के लिए गर्व की बात होगी, बल्कि यह भारत के लिए भी एक धर्मनिरपेक्ष और एकजुटता का संदेश होगा।

यह शहादत वर्षगांठ सिर्फ एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि उस बलिदान की याद है, जिसने पूरे समाज को एकता, समानता और स्वतंत्रता का पाठ पढ़ाया।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *