सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को पंजाब में असिस्टेंट प्रोफेसर और लाइब्रेरियन के 1,158 पदों पर हुई भर्तियों को रद्द कर दिया। कोर्ट ने इस पूरी भर्ती प्रक्रिया को “मनमानी और पारदर्शिता से रहित” बताया।
सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस सुधांशु धूलिया और के. विनोद चंद्रन की बेंच ने पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के 2024 के उस फैसले को भी खारिज कर दिया जिसमें इन भर्तियों को सही ठहराया गया था।
क्या था मामला?
यह मामला अक्टूबर 2021 का है, जब पंजाब उच्च शिक्षा निदेशालय ने असिस्टेंट प्रोफेसर और लाइब्रेरियन के पदों के लिए आवेदन मंगवाए थे। यह फैसला विधानसभा चुनावों से ठीक पहले लिया गया था, जिससे इस पर राजनीतिक दबाव का शक जताया गया।
बाद में कोर्ट में याचिकाएं दायर हुईं जिसमें कहा गया कि इस भर्ती प्रक्रिया में मेरिट और जरूरी इंटरव्यू (viva-voce) को नजरअंदाज किया गया।
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
कोर्ट ने साफ कहा कि इस तरह की स्पेशलाइज्ड भर्ती के लिए यूनिवर्सिटी ग्रांट्स कमीशन (UGC) की गाइडलाइन्स का पालन करना जरूरी होता है। सिर्फ एक मल्टीपल चॉइस (MCQ) टेस्ट से किसी उम्मीदवार की टीचिंग काबिलियत का पूरा आंकलन नहीं किया जा सकता।
कोर्ट ने राज्य सरकार की उस गलती की भी आलोचना की जिसमें इंटरव्यू को हटा दिया गया था। जजों ने कहा, “जब किसी प्रक्रिया को बिना सोचे-समझे और जल्दबाजी में बदल दिया जाता है, तो पूरी भर्ती ही अवैध हो जाती है।”
राजनीतिक दखल और जल्दबाजी पर सवाल
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि इस भर्ती प्रक्रिया में राजनीतिक दखल की झलक मिलती है। चुनावों के समय इस तरह की भर्तियों को जल्दबाजी में पूरा करने की कोशिश नीयत पर सवाल खड़े करती है।
कोर्ट ने यह भी नोट किया कि काउंसिल ऑफ मिनिस्टर्स की राय को नजरअंदाज कर दिया गया था, जिससे यह पूरा मामला और भी संदेहास्पद हो गया।
क्यों है यह फैसला अहम?
इस फैसले से साफ संदेश गया है कि सरकारी नौकरियों में पारदर्शिता, योग्यता और नियमों का पालन बेहद जरूरी है, खासकर शिक्षा जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्र में।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “राज्य सरकार के फैसले तार्किक और पारदर्शी होने चाहिए। जब किसी काम को बिना वजह जल्दी किया जाता है, तो उसमें गड़बड़ी की आशंका होती है।”
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला उन तमाम उम्मीदवारों और आम नागरिकों के लिए एक चेतावनी की तरह है कि सरकारी नौकरियों में राजनीतिक दखल और जल्दबाजी किसी भी कीमत पर स्वीकार नहीं की जाएगी। यह फैसला योग्यता और निष्पक्ष चयन प्रक्रिया की अहमियत को एक बार फिर से रेखांकित करता है।