पंजाब में एक बार फिर किसानों का गुस्सा उभर रहा है। साल 2020 के किसान आंदोलन जैसी आहट महसूस की जा रही है। इस बार मसला है ‘लैंड पूलिंग पॉलिसी’ का, जिसे भगवंत मान सरकार ने जून में लागू किया। सरकार का दावा है कि यह पॉलिसी पंजाब के शहरों का चेहरा बदल देगी और इसे “फ्यूचर ऑफ अर्बन डेवलपमेंट” बताया जा रहा है, लेकिन किसानों, विपक्षी दलों और यहां तक कि आम आदमी पार्टी (AAP) के कुछ नेताओं को यह पॉलिसी रास नहीं आ रही।
क्या है ‘लैंड पूलिंग पॉलिसी’?
पॉलिसी के मुताबिक, सरकार 164 गांवों से 65,000 एकड़ ज़मीन हासिल करेगी। इसके बदले किसानों को मुआवजा, कमर्शियल और रेसिडेंशियल प्लॉट और लंबे समय में ज़मीन की बढ़ी हुई कीमत का फायदा देने का वादा है। सरकार कह रही है – “यह पॉलिसी पूरी तरह वॉलेंटरी है, किसी से ज़बरदस्ती ज़मीन नहीं ली जाएगी।”
क्यों भड़के किसान?
किसान संगठनों को डर है कि यह पॉलिसी उपजाऊ ज़मीन छीनने का रास्ता खोल रही है।
- सम्युक्त किसान मोर्चा (SKM), SKM (नॉन-पॉलिटिकल) और किसान मज़दूर मोर्चा (KMM) ने शुरुआत से ही इसका विरोध शुरू कर दिया।
- 30 जुलाई को 164 गांवों में ट्रैक्टर मार्च निकाला गया। कई गांवों में बोर्ड लग गए – “AAP नेताओं का स्वागत नहीं है।”
लुधियाना बना आंदोलन का epicentre
लुधियाना में सबसे ज़्यादा विरोध हो रहा है क्योंकि यहां 40,000 एकड़ ज़मीन ली जानी है। इसमें से 20,000 एकड़ इंडस्ट्रियल एरिया के लिए है।
- मालक, अलीगढ़, पोना और अगवार गुजरां (जगराओं) जैसे गांव सबसे पहले विरोध में उतरे।
- AAP के कुछ सरपंच खुद विरोध कर रहे हैं और कई ब्लॉक अध्यक्षों ने इस्तीफे दे दिए।
AAP के भीतर भी विरोध की आवाज़
- आनंदपुर साहिब के AAP सांसद मलविंदर सिंह कांग ने किसानों से बातचीत की सलाह देते हुए सोशल मीडिया पोस्ट डाली, बाद में डिलीट कर दी।
- रूपनगर (रूपर) के विधायक दिनेश चड्ढा ने किसानों से कहा – “बिना आपकी मर्जी के एक इंच ज़मीन भी नहीं ली जाएगी।”
सरकार का पलटवार – पॉलिसी में बदलाव
बढ़ते गुस्से को देखते हुए 22 जुलाई को सरकार ने बदलाव किए:
मुआवजा 50,000 रुपये/एकड़ से बढ़ाकर 1 लाख रुपये सालाना कर दिया गया, हर साल 10% बढ़ेगा।
किसानों को कब्ज़ा होने तक खेती जारी रखने की अनुमति।
लेकिन किसानों ने इसे “कॉस्मेटिक बदलाव” कहकर खारिज कर दिया। किसान नेता जोगिंदर सिंह उग्राहां बोले – “जैसे 2020 में हम जीते थे, वैसे ही अब भी जीतेंगे।”
विपक्ष का मोर्चा
- कांग्रेस प्रमुख अमरिंदर सिंह राजा वड़िंग बोले – “2027 में हमारी सरकार आई तो ये पॉलिसी खत्म कर देंगे।”
- शिअद (SAD) अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने इसे “लैंड-ग्रैबिंग पॉलिसी” कहा।
- BJP ने इसे “anti-farmer” करार दिया और राज्यपाल गुलाब चंद कटारिया को मेमोरेंडम सौंपा।
AAP की मुश्किलें और चुप्पी
शुरुआत में CM भगवंत मान ने इसे “remarkable policy” कहा था, लेकिन जैसे-जैसे विरोध बढ़ा, वह चुप हो गए।
- यहां तक कि AAP के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल ने 31 जुलाई–1 अगस्त के पंजाब दौरे में इस मुद्दे पर कुछ नहीं कहा।
- बाद में CM मान ने सफाई दी – “हम वही करेंगे जो लोग और किसान चाहते हैं, हम dictator नहीं हैं।”
सरकार का नया प्लान – धीरे-धीरे रोलआउट
सूत्रों के मुताबिक, अब सरकार पॉलिसी को धीरे-धीरे लागू करने पर विचार कर रही है –
- पहले लुधियाना, मोहाली और पटियाला में शुरू होगा।
- कुछ रियल्टर्स ने 300 एकड़ (लुधियाना), 150 एकड़ (पटियाला) और 50 एकड़ (मोहाली) पर सहमति भी दी है।
किसान आंदोलन और तेज़ होगा
- 7 अगस्त: SKM (नॉन-पॉलिटिकल) की महापंचायत – लुधियाना
- 11 अगस्त: KMM का स्टेटवाइड बाइक मार्च
- 20 और 24 अगस्त: SKM और KMM की बड़ी पंचायतें
- 20 जुलाई से GLADA ऑफिस (लुधियाना) के बाहर धरना जारी।
पंजाब में किसान एक बार फिर सड़क पर हैं। 2020 की तरह नाराज़गी बढ़ रही है। अगर AAP सरकार ने किसानों के साथ डायलॉग और समाधान की दिशा में ठोस कदम नहीं उठाए, तो आने वाले समय में यह मुद्दा 2027 विधानसभा चुनावों में बड़ा असर डाल सकता है।