पंजाब सरकार की लैंड पूलिंग पॉलिसी को लेकर किसानों का गुस्सा कम होने का नाम नहीं ले रहा। मुख्यमंत्री भगवंत मान के आश्वासन के एक दिन बाद भी किसान संगठनों ने साफ कर दिया है कि जब तक यह पॉलिसी पूरी तरह से वापस नहीं ली जाती, तब तक उनका आंदोलन जारी रहेगा।
सरकार ने 2 जून को इस नई लैंड पूलिंग पॉलिसी को लागू किया था, जिसके तहत 21 शहरों और कस्बों में करीब 65,533 एकड़ जमीन को विकसित करने के लिए अधिग्रहित किया जाना है। यह नीति पंजाब में 1966 के बाद अब तक की सबसे बड़ी लैंड एक्विजिशन स्कीम मानी जा रही है।
किसानों की सख्त नाराज़गी
भारतीय किसान यूनियन (राजेवाल गुट) के नेता बलबीर सिंह राजेवाल ने कहा,
“ये नीति पूरी तरह से किसानों के खिलाफ है। सरकार को इसे फौरन रद्द करना चाहिए। अगर सरकार नहीं मानी तो हम सड़क से संसद तक संघर्ष करेंगे।”
बीकेयू डकौंदा के जगमोहन सिंह और बीकेयू (एकता-उग्राहण) के जोगिंदर सिंह उग्राहण ने भी इस नीति को वापस लेने की मांग दोहराई है। उग्राहण ने कहा,
“सरकार को पहले ही समझ जाना चाहिए था कि यह नीति किसानों को मंज़ूर नहीं। हमें आंदोलन करने पर मजबूर क्यों किया गया?”
उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि सरकार ने पहले से अधिग्रहित की गई, लेकिन बिना उपयोग पड़ी जमीन को क्यों नहीं इस्तेमाल किया?
विरोध की आग बढ़ती जा रही है
30 जुलाई को किसानों ने पंजाब में ट्रैक्टर मार्च निकाला, जिसमें उन किसानों ने भी भाग लिया जिनकी जमीन इस योजना में शामिल नहीं है। इसका मतलब यह है कि विरोध सिर्फ प्रभावित किसानों तक सीमित नहीं है, बल्कि पूरे राज्य के किसानों में असंतोष है।
अब 24 अगस्त को संयुक्त किसान मोर्चा (SKM) की बड़ी रैली रखी गई है, जिसका स्थान जल्द घोषित किया जाएगा।
सरकार की कोशिशें
मुख्यमंत्री भगवंत मान ने शनिवार को बयान दिया था:
“हम किसानों से बातचीत करेंगे। वो जो कहेंगे, हम वही करेंगे। हम कोई तानाशाही सरकार नहीं हैं।”
इसके पहले 22 जुलाई को पंजाब सरकार ने इस नीति में कुछ संशोधन भी किए थे। नए संशोधनों के तहत किसानों को बेहतर मुआवज़ा और रिहैबिलिटेशन की बात कही गई थी। लेकिन किसान संगठनों ने इस बदलाव को भी खारिज कर दिया।
कई किसानों ने इस नीति की तुलना 2020 के कृषि कानूनों से की, जिन्हें मोदी सरकार को भारी विरोध के बाद वापस लेना पड़ा था।
अदालत और राजनीतिक मोर्चा
इस नीति को पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट में भी चुनौती दी गई है। साथ ही विपक्षी पार्टियाँ — कांग्रेस, अकाली दल और बीजेपी — भी इस पर सरकार को घेर रही हैं।
AAP सांसद मलविंदर सिंह कांग ने भी पार्टी नेताओं को सलाह दी है कि किसानों का भरोसा जीतने के लिए ईमानदारी से काम करें।
अब तक की स्थिति
- स्कीम के लॉन्च (2 जून) से अब तक सिर्फ 115 किसानों ने इसमें हिस्सा लिया है: 15 लुधियाना से और लगभग 100 मोहाली से।
- स्कीम 30 सितंबर तक ओपन है, यानी तब तक किसान इसमें शामिल हो सकते हैं या विरोध जारी रख सकते हैं।
किसानों की मांगें क्या हैं?
- पॉलिसी को तुरंत रद्द किया जाए।
- उचित मुआवज़ा और पुनर्वास की व्यवस्था हो।
- पहले से अधिग्रहित लेकिन बेकार पड़ी ज़मीन को उपयोग में लाया जाए।
लैंड पूलिंग पॉलिसी को लेकर पंजाब सरकार और किसानों के बीच टकराव अभी भी खत्म होता नहीं दिख रहा। मुख्यमंत्री का नरम रुख दिखाने के बावजूद किसान संगठन पीछे हटने को तैयार नहीं हैं। आने वाले दिनों में सरकार की रणनीति और किसान संगठनों की अगली कार्रवाई इस मुद्दे को और बड़ा मोड़ दे सकती है।